15-10-04   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

“एक को प्रत्यक्ष करने के लिए एकरस स्थिति बनाओ, स्वमान में रहो, सबको सम्मान दो”

आज बापदादा हर एक बच्चे के मस्तक में तीन भाग्य के सितारे चमकते हुए देख रहे है। एक परमात्म पालना का भाग्य, परमात्म पढ़ाई का भाग्य, परमात्म वरदानों का भाग्य। ऐसे तीन सितारे सभी के मस्तक बीच देख रहे है। आप भी अपने भाग्य के चमकते हुए सितारों को देख रहे हो? दिखाई देते है? ऐसे श्रेष्ठ भाग्य के सितारे सारे विश्व में और किसी के भी मस्तक में चमकते हुए नहीं नजर आयेगे। यह भाग्य के सितारे तो सभी के मस्तक में चमक रहे हैं, लेकिन चमक में कहाँ-कहाँ अन्तर दिखाई दे रहा है। कोई की चमक बहुत शक्तिशाली है, कोई की चमक मध्यम है। भाग्य विधाता ने भाग्य सभी बच्चो को एक समान दिया है। कोई को स्पेशल नहीं दिया है। पालना भी एक जैसी, पढाई भी एक साथ, वरदान भी एक ही जैसा सबको मिला है। सारे विश्व के कोने-कोने में पढाई सदा एक ही होती है। यह कमाल है जो एक ही मुरली, एक ही डेट और अमृतवेले का समय भी अपने- अपने देश के हिसाब से होते भी, है एक ही, वरदान भी एक ही है। स्लोगन भी एक ही है। फर्क होता है क्या? अमेरिका और लण्डन में फर्क होता है? नहीं होता है। तो अन्तर क्यों?

अमृतवेले की पालना चारों ओर बापदादा एक ही करते है। निरन्तर याद की विधि भी सबको एक ही मिलती है, फिर नम्बरवार क्यों? विधि एक और सिद्धि की प्राप्ति में अन्तर क्यों? बापदादा का चारों ओर के बच्चों से प्यार भी एक जैसा ही है। बापदादा के प्यार में चाहे पुरुषार्थ प्रमाण नम्बर में लास्ट नम्बर भी हो लेकिन बापदादा का प्यार लास्ट नम्बर में भी वही है। और ही प्यार के साथ लास्ट नम्बर में रहम भी है कि यह लास्ट भी फास्ट, फर्स्ट हो जाए। आप सभी जो दूर-दूर से पहुँचे हो, कैसे पहुँचे हो? परमात्म प्यार खींच के लाया है ना! प्यार की डोरी में खिच के आ गये। तो बापदादा का सबसे प्यार है। ऐसे समझते हो या क्वेश्चन उठता है कि मेरे से प्यार है या कम है? बापदादा का प्यार हर एक बच्चे से एक दो से ज्यादा है। और यह परमात्म प्यार ही सब बच्चों की विशेष पालना का आधार है। हर एक क्या समझते हैं - मेरा प्यार बाप से ज्यादा है कि दूसरे का प्यार ज्यादा है, मेरा कम है? ऐसे समझते हैं? ऐसे समझते हो ना कि मेरा प्यार है? मेरा प्यार है, है ना ऐसे? पाण्डव ऐसे हैं? हर एक कहेगा “मेरा बाबा”, यह नहीं कहेगा सेन्टर इन्वार्ज का बाबा, दादी का बाबा, जानकी दादी का बाबा, कहेगे? नहीं। मेरा बाबा कहेगे। जब मेरा कह दिया और बाप ने भी मेरा कह दिया, बस एक मेरा शब्द में ही बच्चे बाप के बन गये और बाप बच्चों का बन गया। मेहनत लगी क्या? मेहनत लगी? थोड़ी- थोड़ी? नहीं लगी? कभी-कभी तो लगती है? नहीं लगती? लगती है। फिर मेहनत लगती है तो क्या करते हो? थक जाते हो? दिल से, मुहब्बत से कहो “मेरा बाबा”, तो मेहनत मुहब्बत में बदल जायेगी। मेरा बाबा कहने से ही बाप के पास आवाज पहुँच जाता है और बाप एकस्ट्रा मदद देते हैं। लेकिन है दिल का सौदा, जबान का सौदा नहीं है। दिल का सौदा है। तो दिल का सौदा करने में होशियार हो ना? आता है ना? पीछे वालों को आता है? तभी तो पहुँचे हो। लेकिन सबसे दूरदेशी कौन? अमेरिका? अमेरिका वाले दूरदेशी वाले है या बाप दूरदेशी है? अमेरिका तो इस दुनिया में है। बाप तो दूसरी दुनिया से आता है। तो सबसे दूरदेशी कौन? अमेरिका नहीं। सबसे दूरदेशी बापदादा है। एक आकार वतन से आता, एक परमधाम से आता, तो अमेरिका उसके आगे क्या है? कुछ भी नहीं।

तो आज दूरदेशी बाप इस साकार दुनिया के दूरदेशी बच्चो से मिल रहे हैं। नशा है ना? आज हमारे लिए बापदादा आये हैं। भारतवासी तो बाप के हैं ही लेकिन डबल विदेशियों को देख बापदादा विशेष खुश होते हैं। क्यों खुश होते हैं? बापदादा ने देखा है भारत में तो बाप आये है इसीलिए भारतवासियों को यह नशा एकस्ट्रा है लेकिन डबल फरिनर्स से प्यार इसलिए है कि भिन्न-भिन्न कल्चर होते हुए भी ब्राह्मण कल्चर में परिवर्तन हो गये। हो गये ना? अभी तो संकल्प नहीं आता - यह भारत का कल्चर है, हमारा कल्चर तो और है? नहीं। अभी बापदादा रिजल्ट में देखते हैं, सब एक कल्चर के हो गये हैं। चाहे कहाँ के भी हैं, साकार शरीर के लिए देश भिन्न-भिन्न है लेकिन आत्मा ब्राह्मण कल्वर की है और एक बात बापदादा को डबल फौरेनर्स की बहुत अच्छी लगती है, पता है कौनसी? (जल्दी सेवा करने लग गये हैं) और बोलो? (नौकरी भी करते हैं, सेवा भी करते हैं) ऐसे तो इण्डिया में भी करते हैं। इण्डिया में भी नौकरी करते हैं। (कुछ भी होता है तो सच्चाई से अपनी कमज़ोरी को बता देते हैं, स्पष्टवादी हैं) अच्छा, इण्डिया स्पष्टवादी नहीं है?

बापदादा ने यह देखा है कि चाहे दूर रहते हैं लेकिन बाप के प्यार के कारण प्यार में मैजारिटी पास है। भारत को तो भाग्य है ही लेकिन दूर रहते प्यार में सब पास हैं। अगर बापदादा पूछेगा तो प्यार में परसेंटेज है क्या? बाप से प्यार की सबजेक्ट में परसेन्टेज है? जो समझते हैं प्यार में 100 परसेन्ट है वह हाथ उठाओ। (सभी ने हाथ उठाया) अच्छा - 100 परसेन्ट ? भारतवासी नहीं उठा रहे हैं? देखो, भारत को तो सबसे बड़ा भाग्य मिला है कि बाप भारत में ही आये हैं। इसमें बाप को अमेरिका पसन्द नहीं आई, लेकिन भारत पसन्द आया है। यह (अमेरिका की गायत्री बहन) सामने बैठी है इसलिए अमेरिका कह रहे हैं। लेकिन दूर होते भी प्यार अच्छा है। प्राब्लम आती भी है लेकिन फिर भी बाबा-बाबा कहके मिटा लेते हैं।

प्यार में तो बापदादा ने भी पास कर लिया और अभी किसमें पास होना है? होना भी है ना! हैं भी और होना भी है। तो वर्तमान समय के प्रमाण बापदादा यही चाहते हैं कि हर एक बच्चे में स्व-परिवर्तन के शक्ति की परसेन्टेज, जैसे प्यार की शक्ति में सबने हाथ उठाया, सभी ने हाथ उठाया ना! इतनी ही स्व-परिवर्तन की तीव्र गति है? इसमें आधा हाथ उठेगा या पूरा? क्या उठेगा? परिवर्तन करते भी हो लेकिन समय लगता है। समय की समीपता के प्रमाण स्व-परिवर्तन की शक्ति ऐसी तीव्र होनी चाहिए जैसे कागज के ऊपर बिन्दी लगाओ तो कितने में लगती है? कितना समय लगता है? बिन्दी लगाने में कितना समय लगता है? सेकण्ड भी नहीं। ठीक है ना! तो ऐसी तीव्र गति है ? इसमें आधा हाथ उठेगा। समय की रफ्तार तेज है, स्व-परिवर्तन की शक्ति ऐसे तीव होनी है और जब परिवर्तन कहते हैं तो परिवर्तन के आगे पहले स्व शब्द सदा याद रखो। परिवर्तन नहीं, स्व-परिवर्तन। बापदादा को याद है कि बच्चों ने बाप से एक वर्ष के लिए वायदा किया था कि संस्कार परिवर्तन से संसार परिवर्तन करेंगे। याद है? वर्ष मनाया था - संस्कार परिवर्तन से संसार परिवर्तन। तो संसार की गति तो अति में जा रही है। लेकिन संस्कार परिवर्तन उसकी गति इतनी फास्ट है? वैसे फॉरेन की विशेषता है, कॉमन रूप से, फॉरन फास्ट चलता, फास्ट करता। तो बाप पूछते हैं कि संस्कार परिवर्तन में फास्ट हैं? तो बापदादा स्व-परिवर्तन की रफ्तार अभी तीव्र देखने चाहते हैं। सभी पूछते हो ना! बापदादा क्या चाहते हैं? आपस में रूहरिहान करते हो ना, तो एक दो से पूछते हो बापदादा क्या चाहते हैं? तो बापदादा यह चाहते हैं। सेकण्ड में बिन्दी लगे। जैसे कागज में बिन्दी लगती है ना, उससे भी फास्ट, परिवर्तन में जो व्यर्थ है उसमें बिन्दी लगे। बिन्दी लगाने आती है? आती है ना! लेकिन कभी-कभी क्वेश्चन मार्क हो जाता है। लगाते बिन्दी हैं और बन जाता है क्वेश्चन मार्क। यह क्यों, यह क्या? यह क्यों और क्या, यह बिन्दी को क्वेश्चन मार्क में बदल देता है। बापदादा ने पहले भी कहा था - व्हाई-व्हाई नहीं करो, क्या करो? फ्लाई या वाह! वाह! करो या फ्लाई करो। व्हाई-व्हाई नहीं करो। व्हाई-व्हाई करना जल्दी आता है ना! आ जाता है? जब व्हाई आवे ना तो उसको वाह! वाह! कर लो। कोई भी कुछ करता है, कहता है, वाह! ड्रामा वाह ! यह क्यों करता है, यह क्यों कहता, नहीं। यह करे तो मैं करू, नहीं।

आजकल बापदादा ने देखा है, सुना दूँ। परिवर्तन करना है ना। तो आजकल रिजल्ट में चाहे फॉरन में चाहे इण्डिया में दोनों तरफ एक बात की लहर है, वह क्या? यह होना चाहिए, यह मिलना चाहिए, यह इसको करना चाहिए, जो मैं सोचता हूँ, कहता हूँ वह होना चाहिए। यह चाहिए, चाहिए जो संकल्प मात्र में भी होता है, यह वेस्ट थॉटस, बेस्ट बनने नहीं देता है। बापदादा ने सभी का वेस्ट का चार्ट थोडे समय का नोट किया है। चेक किया है। बापदादा के पास तो पॉवरफुल मशीनरी है ना। आप जैसा कंप्यूटर नहीं है, आपका कम्प्यूटर तो गाली भी देता है। लेकिन बापदादा के पास चेकिंग मशीनरी बहुत फास्ट है। तो बापदादा ने देखा मैजारिटी का वेस्ट संकल्प सारे दिन में बीच-बीच में चलता है। क्या होता है, यह वेस्ट संकल्प का वजन भारी होता है और बेस्ट थॉटस का वजन कम होता है। तो यह जो बीच-बीच में वेस्ट थॉटस चलते हैं वह दिमाग को भारी कर देते हैं। पुरुषार्थ को भारी कर देते हैं, बोझ है ना तो वह अपने तरफ खींच लेता है। इसलिए शुभ संकल्प जो स्व-उन्नति की लिफ्ट है, सीढ़ी भी नहीं है लिफ्ट है वह कम होने के कारण, मेहनत की सीढी चढनी पडती है। बस दो शब्द याद करो – वेस्ट को खत्म करने के लिए अमृतवेले से लेके रात तक दो शब्द संकल्प में, बोल में और कर्म में, कार्य में लगाओ। प्रैक्टिकल में लाओ। वह दो शब्द है - स्वमान और सम्मान। स्वमान में रहना है और सम्मान देना है। कोई कैसा भी है, हमें सम्मान देना है। सम्मान देना, स्वमान में स्थित होना है। दोनों का बैलेन्स चाहिए। कभी स्वमान में ज्यादा रहते, कभी सम्मान देने में कमी पड जाती है। ऐसे नहीं कि कोई सम्मान दे तो मैं सम्मान दूँ, नहीं। मुझे दाता बनना है। शिव शक्ति, पाण्डव सेना, दाता के बच्चे दाता हैं। वह दे तो मैं दूँ, वह तो बिजनेस हो गया, दाता नहीं हुआ। तो आप बिजनेसमैन हो कि दाता हो? दाता कभी लेवता नहीं होता। अपने वृत्ति और दृष्टि में यही लभ्य रखो मुझे, औरों को नहीं, मुझे सदा हर एक के प्रति अर्थात् सर्व के प्रति चाहे अज्ञानी है, चाहे ज्ञानी है, अज्ञानियों के प्रति फिर भी शुभभावना रखते हो लेकिन ज्ञानी तू आत्माओं प्रति आपस में हर समय शुभ भावना, शुभ कामना रहे। वृत्ति ऐसी बन जाये, दृष्टि ऐसी बन जाये। बस दृष्टि में जैसे स्थूल बिन्दी है, कभी बिन्दी गायब होती है क्या! आखो में से अगर बिन्दी गायब हो जाये तो क्या बन जायेंगे? देख सकेंगे? तो जैसे आँखों में बिन्दी है, वैसे आत्मा वा बाप बिन्दी नयनों में समाई हो। जैसे देखने वाली बिन्दी कभी गायब नहीं होती, ऐसे आत्मा वा बाप के स्मृति की बिन्दी वृत्ति से, दृष्टि से गायब नहीं हो। फॉलो फादर करना है ना ! तो जैसे बाप की दृष्टि वा वृत्ति में हर बच्चे के लिए स्वमान है, सम्मान है ऐसे ही अपनी दृष्टि वृत्ति में स्वमान, सम्मान। सम्मान देने से जो मन में आता है कि यह बदल जाये, यह नहीं करे, यह ऐसा हो, वह शिक्षा से नहीं होगा लेकिन सम्मान दो तो जो मन में संकल्प रहता है, यह हो, यह बदले, यह ऐसा करे, वह करने लग जायेंगे। वृत्ति से बदलेंगे, बोलने से नहीं बदलते। तो क्या करेंगे? स्वमान और सम्मान, दोनों याद रहेगा ना या सिर्फ स्वमान याद रहेगा? सम्मान देना अर्थात् सम्मान लेना। किसी को भी मान देना समझो माननीय बनना है। आत्मिक प्यार की निशानी है - दूसरे की कमी को अपनी शुभ भावना, शुभ कामना से परिवर्तन करना। बापदादा ने अभी लास्ट सन्देश भी भेजा था कि वर्तमान समय अपना स्वरूप मर्सीफुल बनाओ, रहमदिल। लास्ट जन्म में भी आपके जड चित्र मर्सीफुल बन भक्तों पर रहम कर रहे हैं। जब चित्र इतने मर्सीफुल हैं तो चैतन्य में क्या होगा? चैतन्य तो रहम की खान है। रहम की खान बन जाओ। जो भी आवे रहम, यही प्यार की निशानी है। करना है ना? या सिर्फ सुनना है? करना ही है, बनना ही है। तो बापदादा क्या चाहते हैं, इसका उत्तर दे रहे हैं। प्रश्र करते हैं ना, तो बापदादा उत्तर दे रहे हैं।

बाकी बापदादा को खुशी है, कितने देशों से देखो आये हैं? भिन्न- भिन्न देशों से एक मधुबन में पहुँच गये हैं। बापदादा ने अगले वर्ष एक काम दिया था, याद है? याद है? किसको याद है? पाण्डव, शक्तियाँ? बापदादा ने कहा कि इस वर्ष, एक वर्ष हो गया तो वारिस और माइक बाप के सामने लाना है। कितने वारिस निकाले हैं? बोलो, आस्ट्रेलिया? कितने वारिस निकले हैं? अमेरिका कितने वारिस निकले हैं? माइक तैयार हो रहे हैं? ऐसे? लेकिन बाबा के सामने नहीं आये हैं। आप तो आ गये लेकिन माइक और वारिस नहीं आये हैं। आये हैं? किसी देश का नया वारिस आया है? पुराने तो हैं ही। हाथ उठाओ कोई भी देश। कितने देश आये हैं? यह वारिस बनके आई है, (कोलम्बिया की एक बहन ने हाथ उठाया) मुबारक हो। बहुत अच्छा। और कहाँ से आये हैं? (एक ब्राजील से आया है) मुबारक हो। और कहाँ से आये हैं? (कैनाडा से, अर्जनटीना से, हॉगकाँग से. अमेरिका से, न्यूजीलैण्ड से, जर्मनी से नये-नये बच्चे हाथ उठा रहे हैं) बहुत अच्छा, मुबारक हो। हाँगकांग से 4 निकले हैं। अच्छा पक्के वारिस हैं? अच्छा, ब्राह्मण बनके आये हैं। बहुत अच्छा सेवा में वृद्धि की है, यह तो बहुत अच्छा। वर्तमान समय सेवा में वृद्धि अच्छी हो रही है, चाहे भारत में, चाहे फॉरिन में लेकिन बापदादा चाहते हैं ऐसी कोई निमित्त आत्मा बनाओ जो कोई विशेष कार्य करके दिखाये। ऐसा कोई सहयोगी बने जो अब तक करने चाहते हैं वह करके दिखावे। प्रोग्राम्स तो बहुत किये हैं, जहाँ भी प्रोग्राम्स किये हैं उन सर्व प्रोग्राम्स की सभी तरफ वालों को बापदादा बधाई देते हैं। अभी कोई और नवीनता दिखाओ। जो आपकी तरफ से आपके समान बाप को प्रत्यक्ष करे। परमात्मा की पढाई है, यह मुख से निकले। बाबा-बाबा शब्द दिल से निकले। सहयोगी बनते हैं, लेकिन अभी एक बात जो रही है कि यही एक है, यही एक है, यही एक है यह आवाज फैले। ब्रह्माकुमारियाँ काम अच्छा कर रही हैं, कर सकती हैं, यहाँ तक तो आये हैं लेकिन यही एक है और परमात्म ज्ञान है। बाप को प्रत्यक्ष करने वाला बेधडक बोले। आप बोलते हो परमात्मा कार्य करा रहा है, परमात्मा का कार्य है लेकिन वह कहे कि जिस परमात्मा बाप को सभी पुकार रहे हैं, वह ज्ञान है। अभी यह अनुभव कराओ। जैचे आपके दिल में हर समय क्या है? बाबा, बाबा, बाबा ऐसे कोई ग्रूप निकले। अच्छा है, कर सकते हैं, यहाँ तक तो ठीक है। परिवर्तन हुआ है। लेकिन लास्ट परिवर्तन है - एक है, एक है, एक है। वह होगा जब ब्राह्मण परिवार एकरस स्थिति वाले हो जायें। अभी स्थिति बदलती रहती है। एकरस स्थिति एक को प्रत्यक्ष करेगी। ठीक है ना! तो डबल फॉरिनर्स एक्सैम्पल बनो। सम्मान देने में, स्वमान में रहने में एक्सैम्पुल बनो, नम्बर ले लो। चारों ओर जैसे मोहजीत परिवार का दृष्टान्त बताते हैं ना, जो चपरासी भी, नौकर भी सब मोहजीत। वैसे कहाँ भी जाये अमेरिका जाये, औस्ट्रलिया जाये, हर देश में एकरस, एकमत, स्वमान में रहने वाले, सम्मान देने वाले, इसमें नम्बर लो। ले सकते हैं ना? लो। लेना है नम्बर? यह बैठी है ना, (निर्मला बहन) नम्बर लो। नम्बर लेकर दिखाओ फिर बापदादा दो बारी आयेंगे। (सभी ने ताली बजाई) ताली बजाओ लेकिन पहले रिजल्ट देखेंगे। अच्छा - सब उड रहे हो ना। उडती कला वाले हो ना! नीचे ऊपर नहीं, थक जायेंगे। उडते रहो, उड़ाते रही। अच्छा।

बापदादा ने देखा है - जो नहीं पहुँच सके हैं, उन बच्चों ने यादप्यार तो सबने भेजी है लेकिन पत्र भी बहुतों ने भेजे हैं। दूर बैठे भी देख रहे हैं। लेकिन बाप कहते हैं वह दूर नहीं है, दिल पर है। तो सबसे ज्यादा समीप दिल होती है। इसलिए चाहे कहाँ भी बैठे हैं, नहीं भी देख रहे हैं, दिल से देख रहे हैं, साधन से नहीं देख सकते, दिल से तो देख सकते हैं। तो दिल से देखने वाले, दूर बैठने वाले, सभी बाप के दिलतख्त पर हैं। यादप्यार दिल से भेजा है, समाचार भी आपने भेजे हैं, बापदादा सभी को यादप्यार के साथ-साथ यही वरदान दे रहे हैं - बीती को बीती कर बिन्दी लगाए, बिन्दी बन, बिन्दू बाप को याद करो। यही सभी के याद वा समाचारों का रेसपान्ड बापदादा दे रहे हैं। फर्स्ट चांस डबल फॉरिनर्स ने लिया है, तो फर्स्ट में आना पडेगा। बापदादा खुश है। फॉलो फ़ादर, सदा खुश रहना। अच्छा -

चारों ओर के बाप के नयनों में समाये हुए, नयनों के नूर बच्चों को सदा एकरस स्थिति में स्थित रहने वाले बच्चों को, सदा भाग्य का सितारा चमकने वाले भाग्यवान बच्चों को, सदा स्वमान और सम्मान साथ-साथ रखने बाले बच्चों को, सदा पुरूषार्थ की तीव्र रफ्तार करने वाले बच्चों को बापदादा का यादप्यार, दुआयें और नमस्ते।

दादियों से:- आदि रत्न तो बहुत थोड़े रह गये हैं। (मनोहर दादी ने बहुत-बहुत याद दिया है, वह कानपुर में बैठी है) अच्छा किया, त्याग किया है लेकिन बहुत आत्माओं की दुआयें ले ली। अच्छा, सभी दादियों को देखके खुश होते हैं ना। अच्छा पार्ट बजाए रही है।

(सभा से):- बापदादा देख रहे हैं तो यह भी देख रहे हैं। देखने में आ रहा है ना। अच्छा है देखो इण्डिया वालों ने त्याग तो किया ना। आप डबल फॉरिनर्स को चांस दिया। अच्छा है सबके चेहरे हर्षित हो रहे हैं। अभी ऐसे ही हर्षित रखना। अभी अपना फोटो देख रहे हो ना। अभी का फोटो अपना दिखाई दे रहा है तो सदा ऐसे रहेगा! सदा रहेगा कि बदलेगा? सदा अपने को बापदादा के सन्मुख देखना। साथ देखो। तो सदा ऐसा ही चेहरा रहेगा। अच्छा है, मेहनत तो सभी बहुत कर रहे हैं। और प्यार भी सभी का बहुत अच्छा है। अभी चलते फिरते साधारण नहीं दिखाई दो, फरिश्ते दिखाई दो। अच्छा दादियाँ सभी सेवा की लगन मे, याद की लगन में रहने वाली हैं। सब बहुत अच्छे हैं।

विदेश की बड़ी बहनों से:- मीटिंग अच्छी चल रही है, अभी प्लैन को प्रैक्टिकल में लाना। लेकिन अच्छा करते हैं, आपस में सभी की राय सलाह लेने से दुआयें मिल जाती है। एक अपना लक्ष्य दूसरी दुआयें, तो डबल काम करती है। बाकी हर एक अपना- अपना सम्भाल रहे हैं, अच्छा चल रहा है, चलता रहेगा, उसकी मुबारक हो। सब अच्छा चल रहा है ना। अनुभवी भी हो गये हैं। अनुभव से औरों को भी अनुभवी बना रहे हैं। निर्विघ्न चल रहा है इसकी मुबारक। और उमंग भी सेवा का अच्छा है। बापदादा ने भी समाचार सुना, अफ्रीका के उमंग-उत्साह की मुबारक हो। पहला नम्बर शुरू किया है, उसकी मुबारक। ऐसे सभी को नम्बरवार करना है लेकिन पहले पान का बीडा उठाया है, अच्छा है। प्लैन भी अच्छा है। (अफ्रीका में 55 देश हैं, उसमें से अभी तक 1 तु देशों में सेन्टर हैं, 41 देशों में 2 वर्ष के अन्दर सन्देश देने का प्लैन बनाया है) वहाँ के हैण्डस निकालके वहाँ सेवा कराना, यह प्लैन बहुत अच्छा है क्योंकि और कहाँ से हैण्डस कम ही मिलते हैं और वहाँ से वहाँ के अनुभवी होते हैं।

(निजार भाई ने अफ्रीका के भाई-बहिनों की तरफ से बापदादा को संकल्प पत्र दिया - हमसब संकल्प लेते हैं कि 2006 मम्मा के दिन तक अफ्रीका के सभी देशों में सन्देश देंगे, ताकि कोई का उल्हना न रहे) अच्छा है, बहुत अच्छा। ऐसे ही सभी जो भी रहे हुए हैं, उन्हों को सन्देश देना। यह प्लैन सबसे अच्छा लगा और सहज विधि हो गई ना। हैण्डस भी मिले और सेवा भी बढ गई। अभी सभी को करना है। (लोकल लोग सेवा करते हैं तो रेसपाण्ड अच्छा मिलता है) बहुत अच्छा, मुबारक हो।